Saturday 16 July 2016

भाषा और हम

पूर्व प्रकाशन: फेसबुक पर
आज घटित घटनाओं के सम्बन्ध में एक विचार आया।
आज हमें पहले से अधिक आवश्यकता है भारतीय भाषाओं को बचाने की। यह कोई अंग्रेज़ों के विरोध में अथवा स्वदेशी मूल्यों पर आधारित टिप्पणी नहीं है। भारतीय भाषाओं की कोख में भारत का इतिहास एवं भारत की संस्कृति छुपी हुई है। आज अंग्रेजी का दौर ऐसा चला है कि पढ़ा लिखा व्यक्ति अपने विचार भी अंग्रेजी भाषा में ही सोचता है। आधायत्म हो विज्ञान हो कला हो या राजनीती ही हो इन सब की व्याख्यान आज अंग्रेजी से ही आरम्भ होती है। कुछ दिन पहले मैं अनुपम खेर द्वारा दिए गए एक भाषण को सुन रहा था जिसमें उन्होंने आरम्भ में ही कह दिया था कि वे हिंदी भाषा में ही बोलेंगे। परन्तु विडम्बना यह देखिये कि ऐसा कहने के तुरंत बाद वे अगले ५ मिनट तक अंग्रेजी में ही बोलते रहे। मुझे नहीं पता कि उन्हें इसका आभास भी हुआ कि नहीं।
हम जैसे लोग जो ज़्यादातर अंग्रेजी पढ़ कर स्कूल से निकले हैं और विदेशी लेखकों द्वारा लिखे गए उपन्यासों को पढ़ कर समय व्यतीत करते हैं अब धीरे-धीरे अंग्रेजी सभ्यता एवं संस्कृति को भी अनजाने में अपनी विचारधारा में अंतर्ग्रहण कर रहे हैं।
अंग्रेजी संस्कृति में ग्रीष्म ऋतु को खुशियों से जोड़ा जाता है अथवा शीतकाल एवं वर्षा को दुःख से। भारतीय संस्कृति में ठीक इसका विपरीत है। भारतीय संस्कृति में ग्रीष्म काल को दुःख और पीड़ा से जोड़ा गया है तथा वर्षा एवं शीतकाल को खुशियों और उत्सवों से। आज जब Art of Living के कार्यक्रम के समय जब बारिश हुई तो कई लोगों ने इसे बुरा शगुन अथवा भगवान का दंड माना। परन्तु यह भारतीय संस्कृति में वास्तव में भगवान का दिया आशीर्वाद और शुभ माना जाता।
हिंदी के मुहावरों एवं लोकोक्तियों को अगर जाने तो इनमें भारतीय समाज के इतिहास की एक छवि प्रकट होती सी दिखती है। घी के दिए जलाना, घाट घाट का पानी पीना, गुड गोबर कर देना, चिकना घड़ा, छटी का दूध, ढोल का पोल खोलना इत्यादि हमें हमारे पूर्वजों के जीवन के बारे में कई संकेत देते हैं।
जितना हम अपने देश की भाषाओं से दूर होते जायेंगे उतना ही हम हमारी सांस्कृतिक और ऐतिहासिक धरोहर से दूर होते जायेंगे। हमारे पूर्वजों के प्रति इस से बड़ा द्रोह और कोई नहीं होगा।
इस पर विचार कीजियेगा।
Disclaimer: हालांकि मेरे पूर्वज तमिल भाषी थे यह मेरा दुर्भाग्य है कि मेरी उस भाषा में कोई निपुणता नहीं है। लेकिन मेरे विचार तमिल पर भी उतने ही लागू होंगे जितने हिंदी पर होते हैं।

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